एक नदी की बात सुनी...
इक शायर से पूछ रही थी
रोज़ किनारे दोनों हाथ पकड़ कर मेरे
सीधी राह चलाते हैं
रोज़ ही तो मैं
नाव भर कर, पीठ पे लेकर
कितने लोग हैं पार उतार कर आती हूँ ।
रोज़ मेरे सीने पे लहरें
नाबालिग़ बच्चों के जैसे
कुछ-कुछ लिखी रहती हैं।
क्या ऐसा हो सकता है जब
कुछ भी न हो
कुछ भी नहीं...
और मैं अपनी तह से पीठ लगा के इक शब रुकी रहूँ
बस ठहरी रहूँ
और कुछ भी न हो !
जैसे कविता कह लेने के बाद पड़ी रह जाती है,
मैं पड़ी रहूँ...!
-
-
-------------- गुलज़ार
Thursday 5 April 2018
एक नदी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
डाळिंब बागेचे उन्हाळ्यातील व्यवस्थापन - सध्या उष्णता वाढत असल्याने मार्च ते मे या महिन्यात डाळिंबाच्या नवीन बागेची लागवड करू नये. त...
-
बेनिविया (Cyantraniliprole 10.26% OD पिके (कंसात हेक्टरी प्रमाण): द्राक्ष- फुलकिडे, उडद्या भुंगा ...
-
*-हळद पिकाची निगा व रोग - कीड नियंत्रण.* हळद पिकास जमिनीत नियमित ओलावा लागतो, तसेच जास्तीचे पाणी अजिबात चालत नाही. त्यामुळे हळदीच्या शेतात ...
No comments:
Post a Comment