Friday 17 August 2018

अटलजी की अटल कविता

⚡ _*भारताचे माजी पंतप्रधान मा. अटल बिहारी वाजपेयींच्या निवडक कविता*_

👉 टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी ?
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी।
हार नहीं मानूँगा,
रार नयी ठानूँगा,
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ।
गीत नया गाता हूँ।

👉 मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
गैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।

👉 मौत की उमर क्या है?
दो पल भी नहीं ज़िन्दगी सिलसिला,
आज कल की नहीं मैं जी भर जिया,
मैं मन से मरुँ लौटकर आऊँगा,
कूच से क्यों डरुँ?

👉 कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

👉 जन्म-मरण अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित,प्राणों के पंखों को तौलें।
अपने ही मन से कुछ बोले

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