Wednesday 28 March 2018

क्या तुम जानती हो

क्या तुम ये जानती हो?

क्या तुम ये जानती हो
तुम्हारे चले जाने के बाद
मैं किस तरह तुम्हें ढूंढता था
कैसे गुज़ारता था इन लम्हों को
ये लम्हे जो तुम्हारे साथ होने पर
मुझे ज़िंदगी दे सकती थी
बात करने लग जाऊँ तो कइयों बातें
ज़रूरत ज़ियादा आन पड़े तो आदतें
मैं तब सिर्फ़ तुममें जीता था
तब तुम सिर्फ़ मुझमें रहती थी
क्या तुम ये जानती हो

क्या तुम ये जानती हो
तुम्हारे इंतज़ार में मैंने क्या कुछ किया
सज़्दों में कइयों बार रोया तुम्हें
अक़ीदा किया तुम्हारे नाम का
रूसवाई के लम्हों में भी मैंने
तुम्हें जी-भर के बेइंतहा चाहा
तुम्हारे नाम की मन्नतें माँगी
लौट आने की क़समें दी.. सदाये भेजी
मर-मर के जीता रहा इस इंतज़ार में
कि जब भी तुम लौटकर आओ
तो मुझे अपने इंतज़ार में पाओ
क्या तुम ये जानती हो

क्या तुम ये जानती हो
मुहब्बत से इश्क़ हो चुकी थी तुम
जान कहता था तो जान ही थी तुम
साँसें तुम्हारे इजाज़त से थी मुझमें
दिल मैं था तो उसमें धड़कती थी तुम
वक़्त के जरिये तुमने तमाचा मारा
बिना कुछ बोले मेरा साथ छोड़ा
मैं किस तरह बिख़र गया हूँ अब
तुमने क्यों ऐसे मेरा दिल तोड़ा
मुझमें मैं ही अब ज़िंदा नहीं
तुमको ढूंढूँ तो तुम भी नहीं
क्या तुम ये जानती हो

क्या तुम ये जानती हो
कई रातें मैंने घुट-घुटके बितायी हैं
नींद अपनी आँखों से भी गँवायी हैं
तेरी गलियों में कई बार भटका हूँ
तेरी तस्वीर दिल में कैसे सजायी हैं
सुब्ह धूप निकलने से रात चाँद ढ़लने तक
ओस की बूंदों में इक बारिश सी थी तुम
तुमको सुन-सुनकर मैं जी उठता था
तुममें ही कहीं मैं क़ैद रहता था
कितनी मुहब्बत थी मुझे तुमसे
क्या तुम ये जानती हो.. क्या तुम ये जानती हो?

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