🌸काव्य सृजन🌸
चंचल चितवन नार बैठी
चित्त मे धर सौ सवाल!
बिखराये से सपनों को मैं,
कैसे करूँ पुन: साकार!!
सपने जो संजोये है निरन्तर ही,
अनगिनत निशाओं में जाग -जाग!
सच करने हैं अब सपने स्वर्णिम ,
चित्त ने धरी है ये आस-आस!!
मनोवेदना से हुआ कुण्ठित चित्त,
क्या करूँ मैं प्रयास आज-आज!
हो जाये सभी के मनमंदिर में ही,
बस मेरा ही निवास खास-खास!!
नयनों में उतरी किरणाशा जाग -जाग,
होने लगा उदय नवप्रभात आज-आज!
दिप्ति नयनों की आज देख कर ,
बलिहारी निरन्तर जाये मात-पिता!
स्वर्णिम पल आविर्भूत हो गया,
सपना हुआ पूर्णाकार आज-आज!
अब तो स्वप्निल उजियारा नित-नित,
चित्त में धर रहा उल्लास खास-खास!!
अपेक्षा व्यास
भीलवाड़ा (राज.)
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