Friday 2 February 2018

काव्य सृजन

🌸काव्य सृजन🌸

चंचल चितवन नार बैठी
          चित्त मे धर सौ सवाल!
              बिखराये से सपनों को मैं,
                    कैसे करूँ पुन: साकार!!

सपने जो संजोये है निरन्तर ही,
     अनगिनत निशाओं में जाग -जाग!
         सच करने हैं अब सपने स्वर्णिम ,
             चित्त ने धरी है ये आस-आस!!

मनोवेदना से हुआ कुण्ठित चित्त,
      क्या करूँ मैं  प्रयास आज-आज!
         हो जाये सभी के मनमंदिर में ही,
            बस मेरा ही निवास खास-खास!!

नयनों में उतरी किरणाशा जाग -जाग,
    होने लगा उदय नवप्रभात आज-आज!
        दिप्ति  नयनों की आज  देख कर ,
           बलिहारी निरन्तर जाये मात-पिता!

स्वर्णिम पल आविर्भूत हो गया,
         सपना हुआ पूर्णाकार आज-आज!
              अब तो स्वप्निल उजियारा नित-नित,
                  चित्त में धर रहा उल्लास खास-खास!!

    अपेक्षा व्यास
भीलवाड़ा (राज.)

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