Monday, 14 August 2017

जीत है

जीता है सिर्फ़ तेरे लिए कौन मर के देख
इक रोज़ मेरी जान ये हरकत भी कर के देख

मंज़िल यहीं है आम के पेड़ों की छाँव में
ऐ शहसवार घोड़े से नीचे उतर के देख

टूटे पड़े हैं कितने उजालों के उस्तुख़्वाँ
साया-नुमा अंधेरे के अंदर उतर के देख

फूलों की तंग-दामनी का तज़्किरा न कर
ख़ुशबू की तरह मौज-ए-सबा में बिखर के देख

तुझ पर खुलेंगे मौत की सरहद के रास्ते
हिम्मत अगर है उस की गली से गुज़र के देख

दरिया की वुसअतों से उसे नापते नहीं
तन्हाई कितनी गहरी है इक जाम भर के देख
- आदिल मंसूरी

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