पुण्यतिथि / शैलेन्द्र (14 दिसंबर)
-----------------------------------
उनका असली नाम शंकरदास केसरीलाल था । शैलेन्द्र बिहार के मूल निवासी थे। पिताजी फ़ौज में थे सो उनका जन्म 30 अगस्त, 1923 को रावलपिंडी (पाकिस्तान) में पिता के छावनी क्षेत्र मे हुआ था ! पिताजी रिटायर होने पर मथुरा में बस गए , वहीं पर शैलेन्द्र की शिक्षा-दीक्षा हुई । सन 1942 में बंबई रेलवे में इंजीनियरिंग अप्रेंटिस बने । 1947 में एक कवि सम्मेलन में शैलेन्द्र को पढ़ते देखकर राज कपूर प्रभावित हुए और फ़िल्म 'आग' में लिखने के लिए कहा किन्तु शैलेन्द्र को उन दिनो फ़िल्मी लोगों से घृणा थी। जब शादी के बाद कम आमदनी से घर चलाना मुश्किल हो गया तो राज कपूर के पास पुनः गये। राजकपूर बरसात फ़िल्म की तैयारी में जुटे थे , बरसात के दसों गीतों का पचास हज़ार रुपये पारिश्रमिक शैलेन्द्र को मिला । उसके बाद शैलेन्द्र ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
शैलेन्द्र देशभक्ति की कविताएँ सुनाकर सुनने वालों को देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत कर दिया करते थे, “मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिस्तानी , सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी…..” सरल शब्दों में संवेदनाओं को अभिव्यक्त कर देना शैलेन्द्र की विशेषता थी। एक स्त्री की भावनाओं का कितना सुंदर चित्रण है इस गीत में-
“तन सौंप दिया, मन सौंप दिया, कुछ और तो मेरे पास नहीं
जो तुम से है मेरे हमदम, भगवान से भी वो आस नहीं…..”
शैलेंद्र ने राजकपूर अभिनीत 'तीसरी कसम' फ़िल्म का निर्माण किया था जो फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफाम' पर आधारित थी ! फ़िल्म डूब गई , कर्ज़ से लदे शैलेन्द्र बीमार हो गए। 14 दिसंबर 1966 को वे बीमारी में भी आर. के. स्टूडियो की ओर चले लेकिन रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया। संयोग की बात है कि इसी दिन राजकपूर का जन्मदिन भी मनाया जा रहा था। शैलेन्द्र को नहीं मालूम था कि मौत के बाद उनकी फ़िल्म हिट होगी और उसे पुरस्कार भी मिलेगा। भारत सरकार ने 2013 मे उनकी स्मृति मे डाक टिकट भी जारी किया !
पुण्यतिथि पर कवि शैलेन्द्र को नमन एवं हार्दिक श्रद्धांजलि !
Wednesday 14 December 2016
भावपूर्ण श्रंद्धाजलि
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
डाळिंब बागेचे उन्हाळ्यातील व्यवस्थापन - सध्या उष्णता वाढत असल्याने मार्च ते मे या महिन्यात डाळिंबाच्या नवीन बागेची लागवड करू नये. त...
-
बेनिविया (Cyantraniliprole 10.26% OD पिके (कंसात हेक्टरी प्रमाण): द्राक्ष- फुलकिडे, उडद्या भुंगा ...
-
*-हळद पिकाची निगा व रोग - कीड नियंत्रण.* हळद पिकास जमिनीत नियमित ओलावा लागतो, तसेच जास्तीचे पाणी अजिबात चालत नाही. त्यामुळे हळदीच्या शेतात ...
No comments:
Post a Comment